– इमरजेंसी में इलाज से मना नहीं कर सकता अस्पताल
– ग़लत इलाज पर देना होगा 1 करोड़ से ज्यादा का मुआवज़ा
- इमरजेंसी में इलाज से मना नहीं कर सकता अस्पताल
- खर्च की जानकारी
- मेडिकल रिपोर्ट्स लेने का अधिकार
- सर्जरी से पहले डॉक्टर को लेनी होगी मंजूरी
- अस्पताल नहीं बताएगा कि दवा कहां से लेनी है
- जबरदस्ती मरीज को नहीं रखा जा सकता अस्पताल में
जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अच्छे स्वास्थ्य का होना है। हर व्यक्ति चाहता है कि वो कभी बीमार न पड़े मगर कभी भी इंसान को बीमारियां घेर लेती हैं. बीमारी होते ही रोगी व्यक्ति और उसके परिवार वाले अस्पताल का चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं. अस्पताल में कई बार मरीज़ व तीमारदार को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इसका मुख्य कारण है मरीजों को अस्पताल में मिलने वाले अधिकारों की कम जानकारी होना । संविधान के तहत मरीज़ के कई अधिकार होते है –
यह हैं मरीजों के अधिकार
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- इमरजेंसी में इलाज से मना नहीं कर सकता अस्पताल
कोई भी अस्पताल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, तत्काल इलाज देने से मना नहीं कर सकता. साथ ही अस्पताल तुरंत पैसे की मांग भी नहीं कर सकता है । साथ ही जब कभी मरीज़ अस्पताल में इलाज के लिए पैसे देता है तो उसी वक्त वह कंज्यूमर हो जाता है और किसी भी तरह की शिकायत वह कंज्यूमर कोर्ट में कर सकता है.अगर किसी भी मरीज़ की दवाई या इलाज को लेकर कोई भी शिकायत है तो वह अस्पताल प्रशासन से शिकायत कर सकता है. दवाई को लेकर लोकल फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन में इसकी शिकायत की जा सकती है.
- खर्च की जानकारी
मरीज का यह जानने का अधिकार है कि उसे क्या बीमारी है और वह कब तक उसके ठीक हो जाने की उम्मीद है. साथ ही इलाज करवाने में कितना खर्च आएगा इसकी जानकारी पाने का भी उसे हक है।
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- मेडिकल रिपोर्ट्स लेने का अधिकार
किसी भी मरीज या उसके परिवार वालों को यह अधिकार है कि वह अस्पताल से मरीज की बीमारी से जुड़े दस्तावेज की मांग कर सकते हैं. इन रिकॉर्ड्स में टेस्ट, डॉक्टर या विशेषज्ञ की राय, अस्पताल में भर्ती होने का कारण सहित कई चीज़े शामिल है ।
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- सर्जरी से पहले डॉक्टर को लेनी होगी मंजूरी
रोगी की किसी भी तरह की सर्जरी करने से पहले डॉक्टर को उससे या उसकी देखरेख कर रहे व्यक्ति से मंजूरी लेनी जरूरी है।
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- अस्पताल नहीं बताएगा कि दवा कहां से लेनी है
कई बार मरीज और उसके परिवारवालों की शिकायत होती है कि अस्पताल उन्हें दवा की पर्ची देते वक्त कहता है कि दवा अस्पताल के दुकान से ही लें. नियम के मुताबिक ऐसा करने का अधिकार अस्पताल को नहीं है. यह मरीज का हक है कि वह दवा अपनी मर्जी की दुकान से खरीदे और साथ ही टेस्ट भी अपनी मर्जी की जगह से कराए।
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- जबरदस्ती मरीज को नहीं रखा जा सकता अस्पताल में
कई बार बिल न चुकाए जाने की वजह से अस्पताल मरीज को डिसचार्ज नहीं करता. बिल पूरा न दिए जाने की सूरत में कई बार लाश तक नहीं ले जाने दिया जाता है. कोर्ट ने इसे गैर कानूनी करार दिया है. अस्पताल को मरीज को जबरन रोकने का कोई हक नहीं है। कोर्ट के आदेशानुसार अस्पताल मरीज़ व उसके परिवार पर केस कर सकता है मगर उसे जबरदस्ती अस्पताल में नहीं रख सकता है ।
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- कैसे करें कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत
एक सादे कागज पर पूरी शिकायत लिख कर कंज्यूमर मुआवजे की मांग भी कर सकता है. बता दें कि डिस्ट्रिक कंज्यूमर कोर्ट 20 लाख, स्टेट व नेशनल कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ से ज्यादा का मुआवज़ा का आदेश दे सकता है।
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