- ज्येष्ठ माह में निर्जला एकादशी व्रत किया जाता है
- इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है
- पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 17 जून को सुबह 04 बजकर 43 मिनट से होगी। वहीं इस तिथि का समापन 18 जून को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर होगा। ऐसे में निर्जला एकादशी व्रत 18 जून को किया जाएगा। निर्जला एकादशी व्रत का पारण 19 को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से लेकर 07 बजकर 28 मिनट तक कर सकते हैं।
- ऐसी मान्यता है कि निर्जला एकादशी व्रत का पूर्ण फल जातक को तभी प्राप्त होता है। जब अगले दिन व्रत का पारण किया जाए। इसके बाद श्रद्धा अनुसार गरीब लोगों में अन्न, धन और वस्त्र का दान करना चाहिए।
- इसके अलावा निर्जला एकादशी के दिन तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि मां लक्ष्मी एकादशी व्रत करती हैं, तो ऐसे में पौधे को स्पर्श करने से उनका व्रत खंडित हो जाता है।
- निर्जला एकादशी व्रत गर्भवती महिलाओं को नहीं करना चाहिए। वह भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा कर सकती हैं।
रानीखेत । हिंदू धर्म में कुछ व्रत-त्योहार ऐसे होते हैं जिनका विशेष महत्व होता है। इनमें प्रदोष, चतुर्थी और एकादशी तिथि पर उपवास रखना काफी पुण्य और कल्याणकारी माना जाता है। हर एक माह में दो एकादशी का व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए एकादशी व्रत किया जाता है। इस प्रकार में साल भर में कुल 24 एकादशियां आती हैं जिनका अलग-अलग महत्व होता है। सभी एकादशी में निर्जला एकादशी का खास महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाई जाती है। निर्जला एकादशी व्रत में पूरे दिन बिना पानी पीए और खाए दिनभर उपवास रखा जाता है। इस कारण से सभी एकादशियों में यह सबसे कठिन व्रत माना जाता है। इस व्रत में बिना पानी पीए भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा और आराधना की जाती इस कारण से इसे निर्जला एकादशी के नाम जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार,पूरे साल भर में जितनी एकादशियां होती हैं,उन सबका फल मात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखने से प्राप्त हो जाता है। एकादशी स्वयं विष्णुप्रिया है इसलिए इस दिन निर्जल व्रत,जप-तप,दान-पुण्य करने से प्राणी श्री हरि का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है
1. जलाहर, अर्थात केवल जल ग्रहण करते हुये एकादशी व्रत करना। अधिकांश भक्तगण निर्जला एकादशी पर इस व्रत का पालन करते हैं। हालाँकि, भक्तगण सभी एकादशियों के व्रत में इस नियम का पालन कर सकते हैं।
2. क्षीरभोजी, अर्थात क्षीर का सेवन करते हुये एकादशी का व्रत करना। क्षीर का तात्पर्य दुग्ध एवं पौधों के दूधिया रस से है। किन्तु एकादशी के सन्दर्भ में इसका आशय सभी दूध निर्मित उत्पादों के प्रयोग से है।
3. फलाहारी, अर्थात केवल फल का सेवन करते हुये एकादशी का व्रत करना। इस व्रत में मात्र उच्च श्रेणी के फलों, जैसे आम, अंगूर, केला, बादाम एवं पिस्ता आदि को ही ग्रहण करने चाहिये तथा पत्तेदार शाक-सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिये।
4. नक्तभोजी, अर्थात सूर्यास्त से ठीक पहले दिन में एक समय फलाहार ग्रहण करना। एकल आहार में, सेम, गेहूँ, चावल तथा दालों सहित ऐसा किसी भी प्रकार का अन्न नही हो।
खण्डित होने पर निम्नलिखित समाधान किये जा सकते हैं-
- सर्वप्रथम पुनः सवस्त्र स्नान करें।
- भगवान विष्णु की मूर्ति का दुग्ध, दही, मधु तथा शक्कर से युक्त पञ्चामृत से अभिषेक करें।
- श्री हरि भगवान विष्णु की षोडशोपचार पूजा करें।
- प्रभु से क्षमा-याचना करते हुये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें –
- मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु में॥ ॐ श्री विष्णवे नमः। क्षमा याचनाम् समर्पयामि॥
- गौ, ब्राह्मण और कन्याओं को भोजन करायें।
- व्रत भङ्ग होने पर भगवान विष्णु के द्वादशाक्षर मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का यथाशक्ति तुलसी की माला से जप करें।
- कम से कम 11 माला अवश्य करें। इसके पश्चात आप एक माला का हवन भी कर सकते हैं।
- भगवान विष्णु के स्तोत्रों का भक्तिपूर्वक पाठ करें।
- भगवान विष्णु के मन्दिर में पुजारी जी को पीले वस्त्र, फल, मिष्ठान्न, धर्मग्रन्थ, चने की दाल, हल्दी, केसर आदि वस्तु दान करें।
- यदि आपसे भूलवश से एकादशी का व्रत छूट जाता है तो आप प्रायश्चित के साथ ही निर्जला एकादशी का संकल्प ले सकते हैं। जिसे निर्जला अर्थात बिना जल और अन्न के रखने का निर्देश है।